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शहर में मुखिया आए / संजीव वर्मा ‘सलिल’

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शहनाई बज रही
शहर में मुखिया आए

जन-गण को कर दूर निकट नेता-अधिकारी
इन्हें बनायें सूर छिपाकर कमियाँ सारी
सबकी कोशिश करे मजूरी
भूखी सुखिया
फिर भी गाये

है सच का आभास कर रहे वादे झूठे
करते यही प्रयास वोट जन गण से लूटें
लोकतंत्र की लख मजबूरी,
लोभतंत्र
दुखिया पछताये

आए-गये अखबार रँगे, रेला-रैली में
शामिल थे बटमार कर्म-चादर मैली में
अंधे देखें, बहरे सुन,
गूँगे बोलें
हम चुप रह जाएँ