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शान्त सत्याग्रह कौ भयौ है अन्त कोऊ कहै / नाथ कवि
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शान्त सत्याग्रह कौ भयौ है अन्त कोऊ कहै।
भारत धनी को कियौ अति ही कंगाल है॥
ढैया एक रैया कौ बिकन लागौ ‘नाथ कवि’।
दीनानाथ कीजियौ अनाथन की सम्भाल है॥
हा-हा-कार चारों ओर देश मांहि फैल रह्यौ।
क्लेश कल-मस की चाल कठिन कराल है॥
बलि हो रहा है भूख चण्डी की क्षुधा से प्यारा।
क्रांति का पुजारी यह प्राँत बंगाल है॥