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शिव-विवाह / प्रतिभा सक्सेना

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गन सारे जुटि रहे आस-पासे, कइस औघड़ को दुलहा बनावे,
पूरो संभु को समाज आय ठाड़ो कोऊ जाने न लोक-वेवहारो!
घरनी बिन, रहे भूतन को डेरा रीत-भाँत कोऊ जाने ना अबेरा,
दौर-भागि करें चीज-वस्त पूरा, सो समेटि रहे भाँग और धतूरा,

बाट देखि रह्यो नांदिया दुआरे लै के डमरू भये संभु असवारे
चली भूत-प्रेत की जमात संगे,रूप सब को विरूप, विकल अंगे
सारे जग के अनाथ दई-मारे, आय जुटे तबै संभु के दुआरे,
होहिं पूरन मनोरथ सुभ-काजे, देइ-देइ के असीस संग लागे .

लहर लहर करे गंग की तरंगा, संभु खुदै झूमि रहे भंग-रंगा,
जटा -जूट जड़ी बाल-इन्दु लेखा,धार गजपट विचित्र वेष-भूषा.
ताल देई-देई डमरू बजावैं, मुंडमाल देखि जिया थरथरावे,
लै बरात संभु आय गे दुआरे, लहराय रहे नाग फन निकारे.

पुर लोग देखि दुलहा बिचित्तर, दौरि-दौरि के सुनावैं सब चलित्तर,
नाचें मगन मन भूत- प्रेत सारे, डरि भागे लोग चकित नैन फारे.
परिछन के काज कनिया के वर की, सासु आरती लै संग नार घर की ,
फुंकार नाग, गिरत-परत भागीं, झनझनात गिर्यो थाल अक्षतादि .

रोय नारद को कोसि रही मैना,दाढ़ी-जार विधि, तोहि नाहिं चैना .
संग बिटिया लै कूदि परौं गिरि ते, कइस रही साथ उमा अइस वर के
एक जोड़ा न जापै एक लुटिया, केहि भाँति रहि पाई मोर बिटिया,!
विधि, रूप धारि आये इहि लागे, भाग जागि गा तुम्हार समुझावैं!

जोग धारे संभु अब लौं इकाकी, संजोग बन्यो जइस दीप-बाती
जेहि लागि उमा जन्म धरि तपानी, हाथ मांगे आयो महा-वरदानी,
आज विश्वनाथ आय द्वार ठाड़ो, जस लेहु आपुनो जनम सँवारो
गिरि, कन्या समर्पि देहु बर को, देवि पूरना,संपूरन करो हर को!