भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शेख से रस्मो-राह कर देखें / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 11 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
शेख से रस्मो-राह कर देखें ।
एक गूना गुनाह कर देखें ।।
मौत से जंग है चलो इसमें,
ज़िन्दगी को गवाह कर देखें ।
दिल के पुर्ज़े फ़ज़ा में बिखरे हैं,
अब इन्हें मिहरो-माह कर देखें ।
एक चाहत रहेगी इस दिल में,
वो कभी हमको चाह कर देखें ।
आह नाकारा हो चुकी साबित,
अब ये सोचा है वाह कर देखें ।
ज़िन्दगी दूसरों ने की बरबाद,
आक़बत खुद तबाह कर देखें ।
सोज़ दीवाने हैं आप,
आशिक़ी अब निबाह कर देखें ।।