भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संवादहीनता / प्रगति गुप्ता

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 1 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रगति गुप्ता |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शब्दों को सिरों से बाँधें रखिए
कुछ मेरी कुछ अपनी
कहते-सुनते रहिये...
ये खामोशियांं भी बहुत तन्हा—सी हैं
शब्दों के खोते ही
सरक कर घर बसा लेती हैं...
रिश्तों में फ्रिक से जुड़े
ख्यालों में दूरियाँ बना देती हैं...
व्यस्त तो बेशक़ रहिये
पर शब्दों के तारों को
मज़बूती से बाँध कर रखिए
खामोशियांं बहुत तन्हा सी हैं
उन्हें रिश्तों में बसने ना दीजिए
उन्हें रिश्तों में आने ना दीजिए...