भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संसद से राजघाट तक फैले हुए हैं आप / कुबेरदत्त

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:35, 10 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरदत्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महलों से मुर्दघाट तक फैले हुए हैं आप
मखमल से लेके टाट तक फैले हुए हैं आप

बिजनेस बड़ा है आपका तारीफ़ क्या करें
मन्दिर से लेके हाट तक फैले हुए हैं आप

सोना बिछाना ओढ़ना सब ख़्वाब हो गए
डनलप पिलो से खाट तक फैले हुए हैं आप

ईमान तुल रहा है यहाँ कौडि़यों के मोल
भाषण से लेके बाट तक फैले हुए हैं आप

दरबारियों की भीड़ में जम्हूरियत का रक़्स
आमद से लेके थाट तक फैले हुए हैं आप

जनता का शोर ख़ूब है जनता कहीं नहीं
संसद से राजघाट तक फैले हुए हैं आप