भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सखी आपनो दाम खोटो / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सखी आपनो दाम खोटो दोस काहां कुबज्याकू॥ध्रु०॥
कुबजा दासी कंस रायकी। दराय कोठोडो॥१॥
आपन जाय दुबारका छाय। कागद हूं कोठोडो॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। कुबजा बडी हरी छोडो॥३॥