भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सगरे समैया कोसी माय सुती बैठी हे गमोली / अंगिका

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=अंगिका }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सगरे समैया कोसी माय सुती बैठी हे गमोली
कोसी माय भादो मास उमड़ल हे नदिया
धीरे नैया खेबिहें रे मलहा,
मधुरे नैया रे खेबहें मलहा
नाजुक छेलै रे सखि सब सहेलिया
जैं हमे आहे बहिनो पार देबौ उतारिये
हमरा के बहिनो किए देबैं दानमा
जब हम आरे मलहा
बसबै सासु-रे-नगरिया
तबे देबौ आरे मलहा
छोटकी रे ननदिया दनमा
छोटकी ननदि बहिनों गे
कइसे लेबौ गे दनमा
तोर ननदि गे बहिनो
लागे मोर बहिकनयाँ
देबौ रे देबौ रे मलहा
गला गिरमल हरबा
आरो देबौ हाथ के रे बलिया
झट करे रे पार ।