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सच-सच कह दो पापाजी ! / रमेश तैलंग

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बात-बात पर गुस्से में न डाँटो हम को पापा जी !
हम बच्चों के मन में क्या है, ये भी समझो पापा जी !

बचपन में तो कभी आप भी
करते होंगे शैतानी ।
थोड़ा बहुत बहानेबाज़ी,
थोड़ी-सी आनाकानी ।

टाला-टूली करो न हमसे,
सच-सच कह दो पापा जी !

ह~म्सी-ख़ुशी के कुछ पल ही तो
मिल पाते हैं दिन-भर में ।
उछल-कूद करने को लेकिन
जगह नहीं दिखती घर में ।

अपने इस छोटे से घर का
नक़्शा बदलो पापा जी !

भीतर-भीतर जी न घुटता
तो बोलो, हम क्यों कहते ?
डाँट आपकी या मम्मी की
सुबह-शाम यूँ क्यों सहते ?

कभी बाग में हमें घुमाने को भी
निकलो पापा जी !