भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्तू / मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 25 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी' |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सत्तू जैसा कुछ नहीं,गरमी का आहार ।
आम पुदीना मिर्च की, चटनी हो चटकार ।
चटनी हो चटकार, न कोई तेल मसाला ।
नमक मिलाया और, कचाकच पानी डाला।
रहे हमारे गाँव , एक दादा खरपत्तू ।
कहते मुन्ना सुनो , काट गरमी का सत्तू ।।