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सफ़र / मुकेश पोपली

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इस दुनिया से
उस दुनिया तक का
सफ़र
शैशव की चंचलता
किशोर अल्हचड़ता
यौवन की मादकता
बुढ़ापे की आश्रता ही
सब कुछ नहीं है
गाना पड़ता है
क ख ग का गीत
पढ़नी पढ़ती हैं
जीवन की रेखाएं
गिननी पड़ती हैं
पेट की आंतें
माथे की अनगिनत
लकीरों को भी
मिटाना पड़ता है।