भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर / ग़ालिब

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 19 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ग़ालिब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर

न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर