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सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ / सिया सचदेव
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सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ
दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥
कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं
राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥
अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में
वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥
प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है
अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ
तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है
मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥
मन मंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"
आशाओं के दीप जलाती रहती हूँ॥