भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सब सपने सील गये / ज्ञान प्रकाश आकुल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 1 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश आकुल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीली आंखों में रहकर सब सपने सील गये।

आशाओं के चक्रव्यूह ने कुछ ऐसे उलझाया,
सारे कष्ट लगे मीठे से जब जिसको अपनाया,
बिन पत्थर देखे हम जाने कितने मील गये I

सबने अपने फर्ज़ निभाये सबने हमको चाहा,
एक हाथ अंगारे लाये एक हाथ में फाहा,
हम ही थे जो सदा प्यास तक लेकर झील गये।

रंग बिरंगी कमली ओढ़े सूरा दर दर घूमे,
दाग लगी चादर में कबिरा मस्त मगन हो झूमे,
लगता है सूरज को पुच्छल तारे लील गये।