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सब्र का ज्वालामुखी धधका है फूटेगा ज़रूर / दीप्ति मिश्र

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सब्र का ज्वालामुखी धधका है फूटेगा ज़रूर
सुर्ख़ लावा बह चला है, बाँध टूटेगा ज़रूर

लील जाएगा सभी कुछ आग का दरिया मगर
राख का इक ढेर पीछे फिर भी छूटेगा ज़रूर

सच को सचमुच जानने से पहले इतना जान लो
सच का ये अहसास जी का चैन लूटेगा ज़रूर

खोजने निकले हैं, ख़ुद को, खोज ही लेंगे कभी
हाँ, ख़ुदी की खोज में घर-बार छूटेगा ज़रूर

ख़ुश हैं अपने ख़्वाब में हम, हमको ख़ुश रहने भी दो
यह तो हमको भी पता है ख़्वाब टूटेगा ज़रूर