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समंदर थूं : समदर हूं / हरीश भादानी

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थूं..............
मच चढियोड़ौ
साव उघाड़ौ नागो
दूर दिसावां तांई
सूतौ दीसै...
नेड़ौ तो आंटीज्यौ आवै
पड़ै पछाड़ां खा -खा
लूरलै मखमलिया माटी
झागूंटा थूक जावै
बोला नीं रेवै एक पळ
घैंघावतौ रेवै
सुणै कुण
उछांचळी छोळां-सा
थारा बोल
थूं............
हँसतौ-हँसतौ
जबड़ा पसार
गिट जावै जाज
जूंण री खातर
थारो पताळ छाणती
नांवां, मछेरा
डकार नीं लेवै
उडीकां सुपनां रा
जगता दीका बुझावै थूं
थूं..............
कोई नीं जाणै
कणै भुंआळी खाय
रमझोळी बाड़यां खिंडावै
घरकोला ढावै
मार झपटा
तोड़ लै निरळसूत
थूं..........
लागै तो निमळ नीर
चाखतां
थू-थू खारो
नांव तो संमदर
अंतस तक खारो
सभाव नागो !
अर हूँ
ऊपर सूं हुळक केसरिया
म्हारै हियै
पताळ
अमरत पांणी सूं
तिरिया- मिरिया
बारे री बाट जोेवै
हूँ
नूंता देवूं, उतारूं
खाली बारा
हूँ भरीजूं
गांवतौ - गांवतौ चढूं
धरमजलां धरकूंचां
आंवतौ दीसूं
‘‘आवतौ दीसूं
‘‘आयौ....आयौ..
बठै वो खीली खीलै
अठीनै
हँखळकीजूं कूंडयां-देगां
मैदी सूं राच्या
चुड़लै सूं भरिया हाथ बाजै
लडावै म्हनैं
गावै ‘पिणहरी’
थूं..........
पांणी रो समंदर
हूँ.........
म्हारी बाड़यां रो पांणी
आंख रो मोती
हियै रो बळ
चेरे रो मांण
खेत रो सोनो
हूँ..........
म्हारै आखै बास री
जूंण रो बेली
दुखती रंगां
सुखां सूं फाटतौ हेजड़
धूमर .... डांडिया रम्मत
अर थूं...........
कतरा गुण - गोत थारा
बोल नीं
घैंघावता घमंडीराम बोल
अणथाये
पताळ रा धणी बोल...
समंदर थूं....
क’ समंदर हूँ!