भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय के शब्दों का पुल / संजय शाण्डिल्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 17 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शाण्डिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समय के धुँधलके में
समय की कोई नदी
कहीं बह रही होगी ...

समय के कुकृत्यों से स्याह
समय के सच से भासित
कोई नदी
कहीं बह रही होगी ...

एक दिन मैं
हाँ,
समय की बुलन्दियों पर
चढ़ा हुआ मैं
समय के कीचड़ से
गढ़ा हुआ मैं
एक दिन वहाँ जाऊँगा ज़रूर

जाऊँगा
और उसकी बग़ल में
चुपचाप बैठ जाऊँगा
और बैठा रहूँगा ...
बैठा ही रहूँगा समय के अनन्त तक ...
और इस अनन्त में ही
धीरे
धीरे
एक पुल बना दूँगा
समय का

कैसा लगेगा
समय की नदी पर पुल
समय का ?

समय के शब्दों का पुल ?
पुल
समय के रंगों का ?
समय की ध्वनियों-आलापों का पुल ?

बनकर
जब तैयार हो जाए ऐसा पुल
कभी तुम भी आना इधर
समय पर चढ़कर
समय को पारकर
समय के एकदम क़रीब।