भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समय गीत / किसलय कृष्ण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:18, 5 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किसलय कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्षण में छनाक भ' रहल सगरे, दुनियाँ भरि कोहराम लगय
नगर-शहर में त्राहिमाम, झुझुआन जेना सभ गाम लगय

मज्जर बीच कोइली उदास
नोरायल छैक कुकुरो उपास
पंछी खोंता में भेल संचमंच
मनुक्खक बन्द घर में निवास...
सभ एक दोसरा सँ डेरा रहल, दृश्य एक्के सभ ठाम लगय
क्षणमे छनाक भ' रहल सगरे, दुनियाँ भरि कोहराम लगय

छै रोटी लेल रकटैत लोक
राजमार्ग पर भटकैत लोक
जिनगी तकबाक ब्योंत मे
मृत्यु में आइ लटकैत लोक
प्रकृतिक डाङ ई बेसम्हार, अन्हारे आब आठो याम लगय
क्षणमे छनाक भ' रहल सगरे, दुनियाँ भरि कोहराम लगय

अस्पताल में नहि कोनो यंत्र
सरकार अदौसँ बस भ्रष्टतंत्र
घरहि बन्द रहू सदिखन सभ
यैह टा बाँचल अछि मूलमंत्र
नव भोरक बाट निहारी हम, जगभरि सुन्न मसान लगय
क्षण में छनाक भ' रहल सगरे, दुनियाँ भरि कोहराम लगय