भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समर्पण लिखूँगी / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:16, 17 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
{KKGlobal}}
आजीवन पिया को समर्थन लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।
निज आलिंगन से जिसने जीवन सँवारा
प्रेम से तृप्त करके अतृप्त मन को दुलारा ।
उसे आशाओं स्वप्नों का दर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।
प्रणय -निवेदन उसका था वो हमारा
न मुखर वासना थी; बस प्रेम प्यारा ।
उससे जीवन उजियार हर क्षण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।
न दिशा थी, न दशा थी जब संघर्ष हारा
विकट-संकट से उसने हमको उस पल उबारा ।
उसमें अपनी श्रद्धा का कण-कण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।
कौन कहता है जग में प्रेम जल है खारा
मैंने तो मोती-सीप सागर से ही पाया ।
इस जल पे जीवन ये अर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी।
-0-