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समारम्भ / भारत भारद्वाज

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हमने कभी नहीं कहा था
दूसरी आज़ादी आई है
हमने कभी नहीं शपथ खाई थी
गाँधी की समाधि पर राजघाट में
न हमने तुम्हें झूठा आश्वासन दिया था
हम ग़रीबी मिटाएँगे
तुम्हें जीने की सहूलियतें देंगे ।

हम तो तुम्हें तैयार कर रहे थे
एक असरदार लड़ाई के लिए
लेकिन तुम बहकावे में आ गए
अपने लोगों के
जिन्होंने तुम्हें बदली के दिन भी
सूरज दिखाया था
और तुम उनके पीछे हो लिए थे
यह कहते हुए कि सूरज कितना चमक रहा है
अब न रहेगी ग़रीबी
और न अब मरेगा कोई भूख से ।