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सम्बन्धों की प्रवँचना / स्वदेश भारती

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एक छद्म आवरण ओढ़े है
प्रत्येक आदमी और
कितनी तरह से सम्प्रीति की
गाँठें बान्धकर
सम्बन्धों को जोड़े है

फिर भी कहता
यह प्रवँचना थोड़े है ।

झाउ का पुरवा (प्रतापगढ़), 04 अप्रैल 2013