भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सलामत रहे दिल में घर करने वाले / यगाना चंगेज़ी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:57, 22 सितम्बर 2009 का अवतरण
सलामत रहे दिल में घर करनेवाले।
इस उजडे़ मकाँ में बसर करनेवाले॥
गले पै छुरी क्यों नहीं फेर देते।
असीरों को बेबालो-पर करनेवाले॥
खड़े हैं दुराहे पै दैरो-हरम के।
तेरी जुस्तजू में सफ़र करनेवाले॥
कुजा सहने-आलम, कुजा कुंजे-मरक़द।
बसर कर रहे हैं बसर करनेवाले॥