Last modified on 1 अक्टूबर 2023, at 21:01

सामने इंसानियत के / डा. वीरेन्द्र कुमार शेखर

डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 1 अक्टूबर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार शेखर |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

साँचा:KKCatGazal

सामने इंसानियत के है अजब संकट मियाँ,
वाम पथ था ख़त्म सा, अब मध्य है चौपट मियाँ।

सोच लो मिलता कहाँ है कोशिशों का तब सिला,
रास्ता जाने बिना जब दौड़ते सरपट मियाँ।

जागती जनता बनाती, देश सुखमय दोस्तो,
लोग जब सोते ही रहते, जागते संकट मियाँ।

राजनेता के लिए जज़्बात की क़ीमत नहीं,
सोचने वाले से उसकी चल रही खटपट मियाँ।

राजनैतिक दल कभी जब दूर जनता से हुए,
रूठ जाती है फिर उनसे राज की चौखट मियाँ।

-डॅा. वीरेन्द्र कुमार शेखर