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सारे रंगों वाली लड़की-1 / भरत तिवारी

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सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो?

आम के पेड़ में अभी–अभी जागी कोयल
धानी से रंग के बौर
सब दिख रहे हैं
उन आँखों को
जो तुम्हें देखने के लिए ही बनीं

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो

तुम्हारी सासों का चलना
मेरी साँसों का चलना है
और अब मेरी सांसें दूभर हो रही हैं
गए दिनों के प्रेमपत्र पढ़ता हूँ
जो बाद में आया वह पहले
सूख रही बेल का दीवार से उघड़ना
सिरे से देखते हुए जड़ तक पहुँचा मैं
पहले प्रेमपत्र को थामे देख रहा हूँ, पढ़ रहा हूँ
देख रहा हूँ पहले प्रेमपत्र में दिखते प्यार को
और वहीं दिख रहा है नीचे से झाँकता सबसे बाद वाला पत्र
और दूर होता प्रेम

वहाँ हो
यहाँ हो
सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो?