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सारे रंगों वाली लड़की-2 / भरत तिवारी

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सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो ?

फिर आई
बिना–बताए–आने–वाली–दोपहर
बढ़ाती, दूरी से उपजती पीड़ा
अहाते में सूखता-सा मनीप्लांट
जैसे मर ही जाएगा
जो तुम बनाती हो
उसकी बेल आम के पेड़ पर चिपकी है
पता नहीं क्यों नहीं मरा?

नियति
और कैसे पेड़ के तने को छू गया
पत्तों का विस्तार
देखते–देखते हथेलियों से बड़ा हो गया
वेदना जब लगा कि जाएगी
स्मृतियों को खंगाल
जड़ से लगी यादें बाहर आने लगी
दर्द पुराना साथी
सहारा देता है फिर क्या धूप क्या अमावस ?

दूर गए प्रेम की खोज
मिल ही जाता है स्मृति का कोई तना
ब्रह्माण्ड की हथेली से बड़ा रुदन?
कैसे मरे ये वेदना?

सारे रंगों वाली लड़की
कहाँ हो ?

सारे रंगों वाली लड़की
वृक्षों में भी हो ना ।