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सावन नाचइत उतरल / जयराम सिंह

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सावन नाचइत उतरल झमाझम अंगना में
बादर बजा रहल हे मृदंग गगना में॥

(1)
झिंगुर झनकार रहल,
अचल सुर में तनपूरा,
कोरस कनसूरा,
बँसुरी के धुन सुन ले पवना में।
सावन नाचइत उतरल झमाझम अंगना में॥

(2)
पनसोखा के वीना,
नारद के हाथ में,
ऐरावत पर इंदर,
इंदरानी साथ में,
बिजली के चमक ओकर कंगना में।
सावन नाचइत उतरल झमाझम अंगना में॥

(3)
धरती के तन-मन सीतल कर देलक अकास,
सब किसान मजदुर के दिल में भरलक हुलास,
होरी-धनियाँ थिरकल मगना में।
सावन नाचइत उतरल झमाझम अंगना में॥