भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सासू पनियाँ कैसे जाऊँ (पनघट-गीत) / खड़ी बोली

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 19 सितम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पनघट पर जाना

सासू पनिया भरन कैसे जाऊँ, रसीले दोऊ नैना ।
बहू ओढ़ो चटक चुनरिया, सर पै राखो गगरिया
बहू मेरी छोटी नणद लो साथ, रसीले दोऊ नैना ।
मन्नै ओढ़ी चटक चुनरिया, सर ऊपर रखी गगरिया
हेरी मन्नै छोटी नणद ली साथ, रसीले दोऊ नैना ।
तू बैज्जा पीपल छैंया, मैं भर लाऊँ जल गगरिया
ननदी घर नी जाकर बोल-
भाभी के पनघट पै दोस्त। रसीले दोऊ नैना ।
मेरी ननदल बड़ी हठीली, एक-एक की दो-दो लगावै
बरसात मैं करूँ तेरी सादी
गरमी मैं करूँ तेरा गौणा
भेजकर ना लूँ तेरा नाम, रसीले दोऊ नैना