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सिंधु स्मृति-2 (समुद्र की साँझ) / शकुन्त माथुर

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अंगार लाल
जलता सूरज
समुद्र में उतरा
साँझ सुनहरी पीत तपती रही
मूक बधिर बनी
थिरकती रही

प्रिय की दूर प्रीत
सुनहरी सब
अपनी बाँहों में भर ली है
सूरज डूबे न डूबे।