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सिलसिला / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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यह एक सिलसिला है
शब्दों का
एक लम्बे बहस का
जो बरसों से जारी है
मगर खत्म नहीं होती
यह खाई
यह दूरी
किसने बनाई है ?
कौन पाटेगा इसे ?
यहाँ तो इनक्लाव में
उठी हर गर्दन को
बर्बरीक बना दिया जाता है।