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सींकी के बढ़निया गे बेटी / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सींकी के बढ़निया<ref>झाडू़</ref> गे बेटी, सिरहनमा<ref>सिरहाने, खाट का वह भाग, जिधर सिर रहता है</ref> लाइ गे रखिहऽ।
भोरे भिनसरवा<ref>भिनुसार, प्रातःकाल</ref> गे बेटी, अँगनमा बाढ़ी<ref>बुहार</ref> गे लइहऽ॥1॥
सेहो बढ़नमा<ref>बुहारन</ref> गे बेटी, करखेतवा<ref>जोते-काड़े गये खेत में</ref> जाइऽ गे बिंगिह<ref>फेंक आना</ref>।
सेहू जनमतइ<ref>जन्म लेगा</ref> गे बेटी, कदम जुड़ी<ref>ठण्डी</ref> छँहियाँ॥2॥
सेहू तरे<ref>नीचे, तले</ref> उतरइ गे बेटी, सतपँचुआ<ref>सात-पाँच व्यक्तियों</ref> के जनमल<ref>जन्मा हुआ, पैदा किया हुआ</ref> दमदा।
लँगटवा<ref>नंगा, कंगाल</ref> के जनमल दमदा॥3॥

शब्दार्थ
<references/>