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सीख ले जो भी दाना सिखाए / हरिराज सिंह 'नूर'

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सीख ले जो भी दाना सिखाए।
ये हमें कब ज़माना सिखाए?

ज़िन्दगी है वही ज़िन्दगी जो ,
प्यार में हमको मिटना सिखाए।
 
बन्दगी भी वही बन्दगी है,
जो कि बन्दे को झुकना सिखाए।
 
रौशनी है ऊसूलों की बेहतर,
राह में जो न थकना सिखाए।
 
वाक़ई है वही आदमीयत,
हम को बनना जो अदना सिखाए।
 
ताज़गी है वही ताज़गी जो,
‘नूर’ भरपूर खिलना सिखाए।