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सुकूते-ख़ौफ़ तारी / सुरेन्द्र कुमार वत्स

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सुकूते-ख़ौफ़ तारी,
बता अब किसकी बारी।

न पूछो ज़िन्दगी क्या,
मुसलसल बेक़रारी।

कहीं दिन में अँधेरा,
कहीं रातें खुमारी।

अभी मसले बहुत हैं,
सुनेंगे फिर तुम्हारी।

किसी का शौक़ ठहरा,
किसी की ज़िम्मेदारी।

मशक़्क़त-दर-मशक़्क़त,
यही क़िस्मत हमारी।