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सुन, इमली के दाने सुन! / रमेश तैलंग

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सुन, इमली के दाने सुन!
सुन, इमली के दाने सुन!

तुझे गली में पाया था,
झककर तुझे उठाया था,
सोचा, तुझे उठाकर के,
मिट्टी तले दबाकर के,
चुपके से रख छोडँूगा,
कुछ दिन यूँ ही देखूँगा,
फिर जब बारिश आएगी,
मिट्टी नम हो जाएगी,
अंकुर बन तू फूटेगा,
खुली हवा में झूमेगा,
फिर पौधा बन जाएगा,
दिन दूना बढ़ जाएगा,
फिर तुझ पर फल आएँगे,
हम भी इमली खाएँगे।

पर बचकर तू निकल गया,
हाथों से तू फिसल गया,
जब तक मेरी मति जागी,
तुझे गिलहरी ले भागी।