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सुन ओ सूखे गुलाब / संजय पुरोहित

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पुरानी किताब के
शुष्की पृष्ठों के मध्यय
जन्मक-जन्मों. के वादे
दबी खिलखिलाहट
कोरी मीठी छुअन
और कसम की
याद के आसरे
अब तक जी रहे
ओ सूखे गुलाब
सुन ! बोल !!
किसकी है प्रतीक्षा
कौन सुनेगा गाथा

तेरी खामोशी दर्ज है
उस बियाबां में
जहां प्रतिध्वंनि
की रवायत
कभी थी ही नहीं....