भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुन तो ओ परोसिन / ध्रुव कुमार वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:41, 15 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव कुमार वर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुन तो ओ परोसिन दीदी,
मोर बइहा के गोठ ला।
जूआ मां मढ़ा दिए दीदी,
दस रुपिया के नोट ला।
कालेच ठाकुर देइस हावय,
चार जुवर के बनी ला।
हरदी तेल सिराए हे दीदी
का होगे मोर धनी ला।
मैं कऊवाथंव, गजब मनाथंव
तब मोला मारे ल धरथे।
तही बताना जुआ जीतके
कोनहा महल खड़ा करथे।
रुपिया, पहुँची करधन टोड़ा
पानी अस बोहवा देइस,
खेती बारी सबो ल बेचके,
कुकुर गत करवा देइस।
नगरा नंगरा लइका फिरथे,
मैं झूलत हंव चिथरा में।
अइसे लागथे मूड़, पटकके,
मर जातेंव में पथरा में।
पंडवा सही कोने दिन मां
एहा मोला हार देही।
सीधा सीधा बर तरसाके,
लइका मन ला मार देही।
तूहर मन के पांव परत हंव,
सब मिलके समझा देवव।
परबुधिया के बुध ल मारके
सोझ रद्दा मं लान देवव।
में अकेल्ला कमा के दीदी
नून तेल ला करहूं ओ।
बइठे रइही ठलहा तभ्भे,
ओकर पांव ला परहूं ओ।
मोर देवता ए बहिनी ओला,
ईश्वर अजर अमर राखय।
जुवरिहा के डौकी कइके,
कोनो मोला झन हाँसय।