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सुरसती गनपत मनाइब, चरन पखारब हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

सुरसती<ref>सरस्वती</ref> गनपत मनाइब,<ref>मनाती हूँ, प्रार्थना करती हूँ</ref> चरन पखारब<ref>पखारती हूँ, धोती हूँ</ref> हे।
अहे रूकमिनी भइल राजा जोग,<ref>योग्य</ref> केसब<ref>केशव, कृष्ण भगवान</ref> बर पावल हे॥1॥
नेहाइ धोवाइ<ref>नहा-धोकर, स्नान करके स्वच्छ होकर</ref> के माँग फारल,<ref>फाड़ ली। सँवार ली</ref> अगर चनन सिर धरे।
फूल सेज बिछाय आपन कंत सँग बिहरन लगे॥2॥
चार पहर रात कामिन<ref>कामिनी</ref> हरि सँग बिलास करे।
चउठे पहर जब बीतल सपन एक देखल हे॥3॥
देखि सपना रानी रूकमिनी, अपन हरि जगावहिं।
लाज लोक विचार कछु नहीं, एक बात उचारहि॥4॥
दूसर मास जब बीतल, कार्त्तिक<ref>कार्त्तिक मास</ref> फूलल कुंद कली।
अहे हँसि हँसि पूछथि सखियन उनकर मोदभरी॥5॥
रुकमिन जनमहिं करोध<ref>क्रोध</ref> सखिन मारन धाबहिं।
जाहु नारी, देम<ref>दूँगी</ref> मोंहि खेल न भावहिं॥6॥
तीसर मास जब आयल, अगहन मोद भरी।
सैनहि सैन<ref>झुण्ड के झुण्ड</ref> सखिन सब घुमरि घुमरि<ref>उमड़-घुमड़, घेर लेना</ref> उठे॥7॥
देह लागत सून<ref>सुन्न, शून्य, निर्जीव</ref> भोजन देखि देखि हुल<ref>उलटी, वमन</ref> बरे<ref>आना</ref>।
छप्पन परकार के भोजन छाड़ि देइ, छुवा<ref>छूना</ref> न करे॥8॥
सभ छाड़ि चुल्हवा<ref>चूल्हा</ref> के माटि के रुकमिन चुपके चाटे॥9॥
कउन कारन<ref>रोग, बीमारी</ref> भेल तोंहि के, कहि के मोंहि सुनावहू।
कउन चीज मनभावत, वोंहि के बनावहू॥10॥
नहीं चाहुँ अन धन लछमी, न छप्पन भोजन हे।
नहीं मोरा रोग न सोग, कउन चीज माँग हम हे॥11॥
जलम जलम तोर दासी होऊँ, अउरो न कछु चाहूँ हे॥12॥
चउठी महीने जब बीतल, पूस नियरायल हे।
लागत ठंडा बयार त काँपत हियो हमरो॥13॥
पचमे माह माघ आयल आयल सीरी पंचमी हे।
सजी गेल बाघ<ref>बाग</ref> बगइचा, त रुकमिन हुलसे हियो॥14॥
छठहि मास जब आयल, फागुन छठवाँ जनायल<ref>मालूम पड़ा</ref> हे।
अहे कनक कटोरा में दूध भरि चेरिया त लावल हे॥15॥
सभ छाड़ि अमरस<ref>षट्रस, खट्टा</ref> चाटल, मधुर रस तेजल<ref>त्याग दिया</ref> हे।
अलफी सलफी<ref>साज शृंगार</ref> सभ फेकल<ref>फेंक दिया</ref> मन फरियायल<ref>मिचली आना</ref> हे॥16॥
सतमें मास आयल चइत, सत बाजन<ref>विविध बाजों</ref> बाजये हे।
अहे, मधुबन फुलल असोक, भओंरा<ref>भौंरा, मधुप</ref> रस भरमइ<ref>भ्रमण करता है</ref> हे॥17॥
कोइल सबद सोहावँन, अति मनभाँवन हे।
रुकमिन चिहुँकी के उठथि बदन पियरायल हे॥18॥
अठमे महीने जब, आयल बइसाख<ref>वैशाख मास</ref> नियरायल हे।
अहे फेरि फेरि देख मुँह अयनमा,<ref>ऐना, दर्पण</ref> कइसन<ref>कैसा</ref> मुँह पीयर हे॥19॥
नौमा<ref>नवाँ मास</ref> महीना जब जेठ क दुपहर हे।
लुहवा<ref>लू</ref> चलहइ, धूरी<ref>धूल</ref> उठहइ से रुकमिन व्याकुल हे॥20॥
दसमहि मास जब आयल, असाढ़ नियरायल हे।
कउन विधि उतरब पार, चितय<ref>देखती है</ref> रानी रुकमिन हे॥21॥
जलम लीहल परदुमन, महल उठे सोहर हे।
मोती, मुँगा, चानी, सोना, लुटवल, जे किछु माँगल हे।
सखी सभ मंगल गावहिं, सुध बुध बिसरहिं हे॥22॥
जे इह मंगल गावहिं, गाइ, सुनावहिं हे।
दूध पूत बढ़े अहियात, पुतर फल पावहिं हे॥23॥

शब्दार्थ
<references/>