भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूखा/ सजीव सारथी

Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:40, 8 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सजीव सारथी |संग्रह=एक पल की उम्र लेकर / सजीव सार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोच की धरा पर कहीं,
नमीं नहीं,
पानी नहीं,
कटी फटी जमीं है बस,
प्यास ही प्यास है,
नींदों के जंगलों में,
कहीं कुछ भी हरा नहीं,
पेड़ कुबड़ा गए हैं,
नंगी शाखें आकाश को तकती हैं,
कोरा आकाश,
सर झुकाए खड़ा रहता है,
मौन,
चुप,
कभी एक दरिया हुआ करता था,
जिसके मुहाने पर,
ख्वाबों का एक शहर आबाद था,
आज एक उजाड़ सी बस्ती है –
मुर्दा खण्डहरों की
मेरे भीतर –
एक सूखा आकाश है...