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सूनै गांव रै उपरांखर / नन्द भारद्वाज

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भाख फाट्यां
मुलक मारवाड़ री थळगट माथै
आळस भांगती पुरवाई
उबासी लेय ऊभी हुई
अर मुकलायत बीनणी ज्यूं
हौळै-हौळै चालण लागी
      गांव रै गुवाड़ में
      जाबक अेकली।

अेक कांख पिदावतौ कागलौ
सूनै गांव रै उपरांखर
स्यारै-स्यारै नीसरग्यौ,
गंव-खेड़ै रै सूंवै बिचाळै मोर
आपरी पांख्यां नै फटकार
फरर-फर नाचण लाग्यौ
चांणचूकां अेकलौ
       अणजांण
भरम में चेत्यौ कोनी,
दोफारां ढळती पौर
गांव री सांम्ही छाती -
        चौड़ै-धाड़ै
दो अणसैंधा धाड़ेती हाथ
अैन गांव रै गोरवैं
निबळै नै नागौ करग्या -
कांई हुवै जे करैै कोई
     दुरकार ! हाय थूह !?

फेरूं ई वौ धीरप रौ धोरी
सींव नै त्याग
कठै ई सिरक्यौ कोनीं,
मुलक री माटी रौ मोह छोड
किणी दावै पिछतावै फुरक्यौ कोनीं!

अेक.... दोय.... तीन ....
तेरै.... तीस ....
डरौ मत गिणती कोनीं
      ळालता-फिरता मानवी है -
सांपरता दोय पगां पर चालै
बंध्योड़ी लीकां माथै
बणियोड़ा ठांणां तांई
हौळै-हौळै संकता
        सेवट अेकला !

अै च्यारूंमेर ऊछरता गेला
हीयै में उभराणै पगां रौ
संजोयां पीड़ भर्यौ इतिहास,
सूंघता आगोतर रा सूंण,
आछै आभै में
अणदीठ बादळियां रा छिबका जोवै
पुरवाई थ्यावस देवै
इचरज अर उम्मीदां
आम्हीं-सांम्ही जोवै।

खीजता ऊंतावळ रा ऊंठ
ठाणियै रौ माल ठिकाणै लगाय
ऊभा उगाळ्यां करै
सज्योड़ी झैंकाणां में,
पूंछ रा फटकारा मारै -
         चीढ करै,
असवार री आंकस रौ अरथ
आज वै ऊंधौ मानै
खूंटै सूं आंख मिळावै
       छांनै-छांनै !

ज्यूं धणियां-बायरौ धण
आंधां गेलां में थाबा खावै,
मिनख री समझ सरोधै लार
भाग रा भरमां नै भौळावै
खुद रै ई मारग खाडा खोदै
अर जीवारी री जुगत में
आथड़ती मिनखाजूण
मंजिल पूग्यां पैली थाक जावै।

गांव-घर अर गिनायतां में
अधभीठा समचार पूगै -
चिट्ठी रा नागा आखर
अरथ उघाड़ै -
    ‘वौ मरग्यौ -
     आधै मारग अबखाई करग्यौ!’
पण होणी तौ होवणहार
औसर री घाट चूकौ मती,
बैगा आवौ, संकौ मती!

कुण, कठै, क्यूं मरग्यौ?
अै सवाल अकारथ
अर अपरोखा लागै,
आंरा पड़ूतर
परियाणां में नीं
     पगरखी में है,
जिकी हाल साई रै सट्टै
स्यात् सुगनौ गांठतौ व्हैला -
चावौ तौ पतवांणौ करल्यौ !

सांवट लै -
सांवट लै बीरा खाज,
अणमापी गूंग
गुवाड़ में भूंडी लागै,
अणहुवती बातां अंगरेजी में उगेर
बजार में पूछ हुवैली -
परदेसी बोली में बोल रे स्यांणा!
अैलकार रौ औहदौ मिळसी,
अर घणौ ई जे
भणग्यौ-गुणग्यौ व्है,
कै सीख देवण री कुबांण पड़गी व्है -
ग्यांन री गिरजां थनै
अधगैलौ करगी व्है,
तौ आव सायनां!
साच्यांणी
हाथूं-हाथ थनै
सिरपंच बणाय दां!
     (इणी भांत जे कीं गांव रौ कूटळ
      खेत में खिंड जावै, तौ कांई मैणी है।)

औ पण धरम रौ काम
के करमठोक रै कारी लागै -
सूधै पुळ में अणसैंध
अबखी में अेढै आवै,
पण इत्ती बात अवस चेतै राखणी के
मुलक री सींव माथै अणूंती मगजाई
पाड़ोसी नै दोरी पण लागै -

सुण रे भायला!
अै अणखाधी रा धूतक करणा
आछा कोनी,
म्हनै थ्यावस अर विस्वास है
के मरूभोम रौ मिनख
भौळौ बेसक व्है,
    इत्तौ अधगैलौ कोनीं
के सूनै गांव रै उपरांखर
बैवतौ बगत रौ बायेरौ अर बादळ
मुलक नै अणादीठ कर दै -
रेत सूं ठिसकोळी रौ खेल
घणा दिन
    छांनै-ओलै चालै कोनीं !!

मार्च, 1972