भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सैकड़ों का ग़ुमान बदलेगा / नज़्म सुभाष

Kavita Kosh से

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सैकड़ों का ग़ुमान बदलेगा
देखिएगा रुझान बदलेगा

वोट मांगे हैं प्यार से जिसने
जीतते ही ज़बान बदलेगा

जिसकी आदत उधार खाना है
लाजिमी है दुकान बदलेगा

छोर मिलता नहीं उमीदों का
अब परिंदा उड़ान बदलेगा

हम खुदी को बदल नहीं सकते
सोचते हैं जहान बदलेगा

जिस्म पर नीलस्याह चस्पा हैं
वक़्त ही ये निशान बदलेगा

कल ज़मीं को बदल रहा था तू
आज क्या आसमान बदलेगा

आज जो सच का भर रहा है दम
देखना कल बयान बदलेगा