भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सो जा बिटिया, सो जा रानी / पद्मा सचदेव

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 17 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मा सचदेव |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सो जा बिटिया, सो जा रानी,
निंदिया तेरे द्वार खड़ी।
निंदिया का गोरा है मुखड़ा
चांद से टूटा है इक टुकड़ा,
नींद की बांहों में झूलोगी
गोद में हो जाओगी बड़ी।
निंदिया तेरे द्वार खड़ी!
सपनों में बहलाएगी वो
परीलोक ले जाएगी वो,
बांहों में लेकर उड़ जाए
तुम्हें बनाकर एक परी।
निंदिया तेरे द्वार खड़ी!
निंदिया तुझे झुलाए झूला
तुझे दिखाए तेरा दूल्हा,
घोड़े पर ले जाएगा वो
अपनी दुलहिन उसी घड़ी।
निंदिया तेरे द्वार खड़ी!