भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सोए ज़मीर को जगाइए साहब / इसाक अश्क
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:35, 30 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इसाक अश्क }} {{KKCatGhazal}} <poem> सोए ज़मीर को जगाइए साहब ऊ…)
सोए ज़मीर को जगाइए साहब
ऊपर से नीचे को आइए साहब
अपना देश ख़ून देकर भी अगर
बच सकता है तो बचाइए साहब
राजनीति तो तवायफ़ है कोठे की
इसे पूजा-घर तक न लाइए साहब
दुश्मनों से तो निपट लेंगे हम
दोस्तों को पास से हटाइए साहब
आईना देखकर आप भी कभी
अपनी करतूतों पर शरमाइए साहब