Last modified on 28 अगस्त 2022, at 12:44

सोचता हूँ / शशिप्रकाश

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 28 अगस्त 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिप्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि
सोचता हूँ एक अहमक की तरह कि
तब भी क्यों धड़कता है दिल
जब इसपर तुम्हारा सिर नहीं टिका होता I

उँगलियों में हरक़त
उस समय भी क्यों होती है
जब ये तुम्हारे बालों में
नहीं फिरा करतीं I

आँखें शून्य में क्यों घूरती हैं एकटक,
जब वहाँ नहीं भी होती हैं
दुनिया की सबसे सुन्दर आँखें !

इसलिए, शायद इसलिए कि
अभी और भी सुन्दर होना है
इस ज़िन्दगी को
और भी अधिक प्यार से भरी हुई,
दुनिया की तमाम बदसूरती और नफ़रत को
चुनौती देती हुई I

और सोचता हूँ, इस सुन्दर चाहत का,
इस अमिट प्यास का बने रहना ही
प्यार की बुनियादी शर्त है और
जीवन के पुनर्नवा होते रहने की भी I

यही तो वह प्यार है
जिसके लिए हम जीते हैं, लड़ते हैं,
लगा देते हैं
पूरी ज़िन्दगी दाँव पर
और जिसकी सबके लिए कामना करते हैं
दिल की पूरी गहराई से !