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सोनमछरिया / रमेश तैलंग

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ताल में जी ताल में,
सोनमछरिया ताल में,
मछुआरे ने मन्तर फूँका
जाल गया पाताल में!

थर-थर काँपा ताल का पानी,
फँसी जाल में मछली रानी,
तड़प-तड़प कर सोनमछरिया
मछुआरे से बोली— ‘भैया!
मुझे निकालो, मुझे निकालो
दम घुटता है जाल में!'

मछुआरे ने सोचा पल भर,
कहा, ‘छोड़ दूँ तुझे मैं अगर
उठ जाएगा दाना-पानी,
क्या होगा फिर मछली रानी?’
मछली बोली, रोती-रोती—
‘मेरे पास पड़े कुछ मोती
जल में छोड़ो, ले आऊँगी,
सारे तुझको दे जाऊँगी।’

मछुआरे को बात जँच गयी
बस, मछली की जान बच गयी,
मछुआरे को मोती देकर
जल में फुदकी जल की रानी!
सोनमछरिया-मछुआरे की
ख़त्म हुई इस तरह कहानी।