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सोने की कोशिशें तो बहुत की गईं मगर / अमन चाँदपुरी

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सोने की कोशिशें तो बहुत की गईं मगर
क्या कीजिए जो नींद से झगड़ा हो रात भर

मैंने ख़ुद अपना साया ही बाँहों में भर लिया
उसका ख़ुमार छाया था मुझ पे कुछ इस कदर

आँखों में चंद ख़्वाब थे और दिल में कुछ उमीद
जलता रहा मैं आग की मानिंद उम्र भर

क्यूँ कोई उसपे डाले नज़र एहतेराम की
कहलाये इल्मो फ़न में जो यकता न मोतबर

पल में तमाम हो गया क़िस्सा हयात का
उसकी निगाह मुझ पे रही इतनी मुख़्तसर

दुश्वारियों से ज़िन्दगी आसाँ हुई मेरी
दुश्वारियों का ख़ौफ़ गया ज़ेह्न से उतर

हमने सुख़न में कोई इज़ाफ़ा नहीं किया
गेसू ग़ज़ल के सिर्फ़ सँवारे हैं उम्र भर

इल्मो हुनर मिले हैं मगर तेरे सामने
पहले भी बेहुनर थे 'अमन' अब भी बेहुनर