भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्कूल / गिरीश पंकज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 16 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरीश पंकज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँखों का तारा स्कूल,
अपना तो न्यारा स्कूल ।

ज्ञान बाँटता बच्चों को नित,
कभी नहीं हारा स्कूल ।

छुट्टी के दिन रहे अकेला,
हाँ, तब बेचारा स्कूल ।

जैसे मां को मैं प्यारा हूँ,
मुझको है प्यारा स्कूल ।

आँखों का तारा स्कूल ।
अपना तो न्यारा स्कूल ।