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हँसते-हँसते तय रस्ते पथरीले करने हैं / ओंकार सिंह विवेक

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हँसते-हँसते तय रस्ते पथरीले करने हैं,
हमको बाधाओं के तेवर ढीले करने हैं।

कैसे कह दूँ बोझ नहीं अब ज़िम्मेदारी का,
बेटी के भी हाथ अभी तो पीले करने हैं।

ये जो बैठ गए हो यादों का बक्सा लेकर,
क्या फिर तुमको अपने नैना गीले करने हैं।
 
 फ़िक्र नहीं है आज किसी को रूह सजाने की,
 सबको एक ही धुन है,जिस्म सजीले करने हैं।

 होते हैं तो हो जाएँ लोगों के दिल घायल,
 उनको तो शब्दों के तीर नुकीले करने हैं।
 
 तुम तो ख़ुद ही मुँह की खाकर लौटे हो हज़रत,
 कहते थे दुश्मन के तेवर ढीले करने हैं।

जैसे भी संभव हो पाए,प्यार की धरती से,
ध्वस्त हमें मिलकर नफ़रत के टीले करने हैं।