भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हँसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो / ओमप्रकाश यती

Kavita Kosh से
डा० जगदीश व्योम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:07, 22 अप्रैल 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हँसी को और खुशियों को हमारे साथ रहने दो
अभी कुछ देर सपनों को हमारे साथ रहने दो।

तुम्हें फुरसत नहीं तो जाओ बेटा आज ही जाओ
मगर दो रोज़ बच्चों को हमारे साथ रहाने दो।

ये जंगल कट गए तो किसके साए में गुज़र होगी
हमेशा इन बुजुर्गों को हमारे साथ रहने दो।

हरा सब कुछ नहीं है इस धरा पर हम दिखा देंगे
ज़रा सावन के अंधों को हमारे साथ रहने दो।

ग़ज़ल में, गीत में, मुक्तक में ढल जाएंगे ये इक दिन
भटकते फिरते शब्दों को हमारे साथ रहने दो।