भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हउवा के जात भइल / सरोज सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:37, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हउवा के जात भइल बड़ा जुर्म बा मनवा के बात कइल कड़ा जुर्म बा
भोरे के एलार्म में उ बोलत बियाकाम-काज पहीर के उ डोलत बिया

जिनगी के सूप में फटकात रहेले कपड़ा के फिचन अस झटकात रहेले
कुकर के सिटी में ऊ चीखsतीया पोछा के पानी में ऊ भीगsतिया

बेलना से चकला पs बेलात रहेले लहकत तावा पs रोजो सेंकात रहेले
अधहन में भात नियर पाकsतीयासंजोअल सपना मनेमन हाँकsतिया

साजन खातिर सजत संवरत बिया लईकन के सुख खातिर दउरत बिया
घर अमृत कई के जहर पियत बियातब्बो ऊ जिनगी जी जान से जियsतिया