भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम इज़ाफ़ी मिट्टी से बने / ज़ाहिद इमरोज़

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:06, 24 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाहिद इमरोज़ }} {{KKCatNazm}} <poem> रोशनी क़त...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोशनी क़त्ल हुई
तो जिस्म ख़ाली हो गए
ज़िंदगी का ग़ुबार ही हमारा हासिल है
हम ने पराए-घरों की राज-गीरी की
और अपनी छत के ख़्वाब देखे
हमें कब मालूम था
सोई दुकानों की सीढ़ियाँ हमारा तकिया हैं
हमारे नाम इज़ाफ़ी मिट्टी पर लिखे गए
और हम फ़क़त लोगों को दोहराते रहे

हम बे-एहतियात लम्हों का क़िसाास नहीं थे
हम हलाल के थे
मगर बेघर पैदा हुए