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हम इधर और तुम उधर भटके / अनुज ‘अब्र’
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हम इधर और तुम उधर भटके
हिज्र में दोनों उम्र भर भटके
हुस्न खिड़की के पीछे बेबस है
इश्क नाकाम दर ब दर भटके
पा सकोगे न मंजिले अपनी
राह से दोस्त तुम अगर भटके
उसका ख़त ले के मेरी गलियों में
चाहता हूं कि नामावर भटके
जाने क्या ढूढ़ने की ख़्वाहिश में
बारहा रेत पर लहर भटके
पेट की भूख से परेशां हो
इस नगर से हम उस नगर भटके
सामने दोस्तों मेरे हरदम
एक मंज़िल तो थी मगर भटके